Santh Kabir Das Dohe – Part 5

Santh Kabir Das Dohe – Part 5

ज्ञान रतन का जतन कर, माटी का संसार । 
हाय कबीरा फिर गया, फीका है संसार ॥

 

 

कुटिल वचन सबसे बुरा, जा से होत न चार ।
साधू वचन जल रूप है, बरसे अमृत धार ॥

 

 
 
जब गुण को गाहक मिले, तब गुण लाख बिकाई ।

जब गुण को गाहक नहीं, तब कौड़ी बदले जाई ॥
 

 
 
यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान ।

शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान ॥
 

 

जाति न पूछो साधू की पूछ लीजिए ज्ञान ।
मोल करो तलवार को पडा रहन दो म्यान ॥

 
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय ।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय ॥
 

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